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स जि॒ह्वया॒ चतु॑रनीक ऋञ्जते॒ चारु॒ वसा॑नो॒ वरु॑णो॒ यत॑न्न॒रिम्। न तस्य॑ विद्म पुरुष॒त्वता॑ व॒यं यतो॒ भगः॑ सवि॒ता दाति॒ वार्य॑म् ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa jihvayā caturanīka ṛñjate cāru vasāno varuṇo yatann arim | na tasya vidma puruṣatvatā vayaṁ yato bhagaḥ savitā dāti vāryam ||

पद पाठ

सः। जि॒ह्वया॑। चतुः॑ऽअनीकः। ऋ॒ञ्ज॒ते॒। चारु॑। वसा॑नः। वरु॑णः। यत॑न्। अ॒रिम्। न। तस्य॑। वि॒द्म॒। पु॒रु॒ष॒त्वता॑। व॒यम्। यतः॑। भगः॑। स॒वि॒ता। दाति॑। वार्य॑म् ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:48» मन्त्र:5 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:2» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

प्रशंसित सेना जिसकी ऐसा ही राजा जीतनेवाला होने को योग्य है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (वरुणः) श्रेष्ठ (चारु) सुन्दर वस्त्र को (वसानः) धारण करता हुआ (चतुरनीकः) चार प्रकार की सेनायें जिसकी यह (जिह्वया) वाणी से (अरिम्) शत्रु का (यतन्) यत्न करता हुआ (पुरुषत्वता) बहुत पुरुषार्थ के साथ (भगः) ऐश्वर्य्य से युक्त (सविता) सत्य में प्रेरणा करनेवाला (वार्यम्) स्वीकार करने योग्य उपदेश को (दाति) देता है (सः) वह (ऋञ्जते) उत्तम प्रकार सिद्ध करता है (यतः) जिससे (वयम्) हम लोग (तस्य) उसके पुरुषार्थ के अन्त को (न) नहीं (विद्म) जानें ॥५॥
भावार्थभाषाः - जिसकी उत्तम सेना है, वही राजा प्रशंसित होता है ॥५॥ इस सूक्त में विद्वान् और राजा के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह अड़तालीसवाँ सूक्त और द्वितीय वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

प्रशंसितसेन एव राजा विजयी भवितुमर्हति ॥

अन्वय:

यो वरुणश्चारु वसानश्चतुरनीको जिह्वयाऽरिं यतन् पुरुषत्वता भगः सविता वार्यं दाति स ऋञ्जते यतो वयं तस्य पुरुषार्थान्तं न विद्म ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (जिह्वया) वाण्या (चतुरनीकः) चतुर्विधान्यनीकानि अस्य सः (ऋञ्जसे) प्रसाध्नोति (चारु) सुन्दरं वस्त्रम् (वसानः) धरन् (वरुणः) श्रेष्ठः (यतन्) यत्नं कुर्वन् (अरिम्) शत्रुम् (न) (तस्य) (विद्म) जानीयाम (पुरुषत्वता) बहुपुरुषार्थेन सह (वयम्) (यतः) (भगः) ऐश्वर्य्यवान् (सविता) सत्ये प्रेरकः (दाति) ददाति (वार्य्यम्) वर्त्तुं योग्यमुपदेशम् ॥५॥
भावार्थभाषाः - यस्योत्तमं सैन्यं स एव राजा प्रशंसितो भवति ॥५॥ अत्र विद्वद्राजगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्यष्टाचत्वारिंशत्तमं सूक्तं द्वितीयो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्याचे सैन्य उत्तम असेल तोच राजा प्रशंसित असतो. ॥ ५ ॥